Saturday, April 30, 2016

जैविक भारत कोआपरेटिव सोसाइटी



उपभोक्ताओं द्वारा किसानों की चिंता किया जाना ताकि किसान अपने खेत में जो भी पैदा करे वह उपभोक्ताओं के भौतिक और मानसिक स्वास्थ के लिए उत्तम हो। यह सम्भव  है किसानों के मन में यह विश्वास जगाने पर की उपभोक्ता और उसका सम्बन्ध केवल व्यवसाईक न हो कर आत्मिक सम्बन्ध है। उपभोक्ता परिवार  और उसके किसान परिवार के संसाधन का उपयोग आवश्यकता पड़ने पर मिल जुल कर किया जा सकता है। इस तरह उपभोक्ता और किसान एक दूसरे के सहचर  बन कर रहेंगे न की एक दूसरे का दोहन करने वाले।

किसान और उपभोक्ता सनातन धर्म  के सहअस्तित्व के सिद्धांत पर काम करेंगे न की पश्चिमी समझ जिसमे केवल योग्यतम की उत्तरजीविता की कल्पना की गयी है।

किसान आवश्यकता आधारित उत्पादन करे न की उत्पादन आधारित विपणन।
बाजार आधारित मुक्त  विपणन गुणवत्ता आधारित न होकर परिमाण आधारित होता है
 
 जैविक भारत कोआपरेटिव सोसाइटी  किसान और उपभोक्तओं के बीच में विन -विन सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास कर रही है।

स्वस्थ उपभोक्ता  और संपन्न  किसान जैविक भारत कोआपरेटिव सोसाइटी  का मन्त्र है।

शहरी उपभोक्तओं और ग्रामीण किसान के बीच की दूरी काम करने का प्रयास है।


शहर में आ गए ऐसे परिवार जिनकी खेती योग्य जमीन उपयोग खेती में नहीं हो पा  रहा है उस भूमि को किसानों को देकर खेती करवाना संभव हो सकेगा। और इस तरहसंयुक्त खेती की जा सकेगी।
अकेला किसान विज्ञानं का लाभ नहीं उठा सकता है लेकिन किसानों के समूह द्वारा ऐसा करना संभव है।
जो जिस काम का विशेषज्ञ हैं वही काम करे।
किसान अपने मॉल की बिक्री एक शहर में करे तथा वही खरीद करे
राज्य के प्रतिनिधि केंद्रीय समित के सदस्य होंगे.
जैसे शहर में हर परिवार का एक डाक़्टर हो होता है वैसे ही हर परिवार का एक किसान भी हो।




 

No comments:

Post a Comment