Monday, June 23, 2014

विकास का मन्त्र और एन जी ओ का तन्त्र

पिछले  दो -तीन सप्ताह से लगातार देश में चल रहे तमाम एन जी ओ पर तरह तरह के सवाल उठ खड़े हुए है. कही इस बात पर बहस है की एन जी ओ  निहित स्वार्थो की वजह से देश की विकास योजनाओं  में बाधक बन रहे है कुछ की आपत्ति इन्हे विदेशो से मिलने वाले पैसे की है. शुरू हुई बहस का कारण कुछ भी हो,इस बहस की वजह से एक बार ऐसी संस्थाओं के द्वारा किये जाने वाले काम और समाज में उसके प्रभाव पर नये सिरे से चर्चा करने का अवसर आ गया है वरना हमारे देश मे किसी भी चीज पर चर्चा करने की जरुरत नहीं समझी जाती है. विशेष रूप से उन विषयो पर जिन में गहरी साजिस के तहत निहित स्वार्थो द्वारा काम किया जा रहा हो. इसका सबसे ताजा उदाहरण है चुनाओं के दौरान मोदी द्वारा धारा 370 पर बहस का मुद्दा उठाया जाना। कश्मीर से कन्या कुमारी तक कुछ लोगो ने बहस के विचार को ही ख़ारिज करने का आवाहन कर डाला और एन डी ए सरकार बनने के बाद जैसे ही सरकार की तरफ से इसकी औपचारिक घोषणा हुई जम्मू कश्मीर के मुख्य मंत्री ने तो यह तक कह दिया "तो फिर कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा" . यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है की अभी धारा को खत्म किया जाये ऐसा कोई विचार सरकार ने नहीं किया है बहस तो वहां के लोगो को क्या लाभ हुआ है और क्या हानि होगी यदि हटाया जाये इस पर विचार करने की बात हो रही है.

देश में चलाये जाने वाले एन जी ओ ज्यादातर मठाधीशों ,व्यापारिओं या सरकारी अधिकारिओं के द्वारा छद्म वेश में संचालित है जो अपने विशेष कार्यक्रम लेकर आती है और उसके द्वारा व्यापारिक तथा अन्य तरह के हित साधती है । अनेक उदाहरणों में तो इनके असली मालिक विदेशो में बैठे मिलेंगे। सम्भावना यह भी है की देश हितों  के विरुद्ध काम करने वाली अनेक  ताकतें स्थानीय  एन जी ओ के माध्यम से संचालित  आंदोलनों के द्वारा अपने हित साधने की कोशिश करती है.ठीक तरह से खोज बीन की जाये तो  काले धन को निवेश कर सम्पत्ती बनाने के और फिर उनका स्वलाभ के इस्तेमाल का भी भेद खुल सकेगा। वास्तव में यह देश के लिए एक गंभीर विषय है और इस पर सभी दृष्टिकोणों से विचार करना उचित होगा।


एक   मोटे अनुमान के  हिसाब से  इस समय देश में करीब  बीस लाख एन जी ओ सक्रिय है जिसमे अकेले उत्तर प्रदेश में साढ़े पांच लाख ,केरल में साढ़े तीन, लाख मध्य प्रदेश में डेढ़ लाख के करीब संस्थाए कार्यरत है. यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा की करीब ६०० लोगो पर एक एन जी ओ देश में कार्यरत है जबकि करीब १७०० लोगो पर एक डॉकटर और ९४३ लोगो पर एक पुलिस की उपलब्धता  है। लगभग बाईस हजार एन जी ओ को विदेश और विदेशिओं से चंदा अथवा दान प्राप्त होता है. दान देने वाले देशो में अमेरिका का नाम सबसे ऊपर है जहाँ से पिछले वर्ष करींब अड़तीस सौ करोड़, ब्रिटेन से बारह सौ करोड़ तथा जर्मनी और इटली से क्रमशा:करीब एक हजार करोड़ और पांच सौ करोड़ की धन राशि प्राप्त इन एन जी ओ को प्राप्त हुई।

भारत सरकार अपनी विभिन्न योजनाओं के माध्यम सेएन जी ओ कितनी धनराशि आबन्टित करती है इसके आंकड़े केवल आश्चर्यजनक  नहीं हैरान करने वाले है.यदि यह कहा जाये की देश के एन जी ओ सरकारी धन की लूट का एक माध्यम बन गए है तो अतिश्योक्ति  नहीं होगी। एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स,नई दिल्ली ने इस सम्बन्ध में एक अध्यन करवाया जिससे पता चलता है की किस तरह से गरीबो के नाम पर सरकार और सरकारी अधिकारिओ की मिली भगत ने टैक्स से वसूल की गयी  धनराशी का बड़ा हिस्सा उन लोगो तक कभी पंहुचा ही नहीं जीने लिए यह आबंटित किया गया था। स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने एक बार यह स्वीकार किया था की केवल पंद्रह फीसदी पैसा ही सही जगह पर पहुचता है।आश्चर्य नहीं यदि   देश से बाहर भेजे  गए करोड़ो रुपये जो विदेशी बैंकों में जमा है इसका  बड़ा हिस्सा  धन  का स्रोत यही हो। आकड़ो की बात करे तो औसतन 950,62,26,812 रुपए प्रति वर्ष २००३-२००९ के बीचअनुदान के रूप में दिए गये.